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Prostate Awareness Month

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प्रोस्टेट क्या होता है ?

प्रोस्टेट यानी पौरुष ग्रन्थि हर आदमी में रहती है। बाल्य अवस्था में बहुत छोटी रहती है। यौवन आते समय  थोड़ी सी बढ़ जाती है, पर रुकावट नहीं करती। 40-50 वर्ष के बाद फिर से बढ़ना चालू हो जाता है. व 20-30 प्रतिशत लोगों को ज्यादा तकलीफ होती है। प्रोस्टेट की ग्रन्थि सामान्यतः बादाम के बराबर रहती है व मूत्राशय के नीचे, मूत्रनली के चारों तरफ व मलाशय के आगे स्थित रहती है। चूँकि इसके सामने पेढू की हड्डी रहती है इसकी जाँच दास्ताने पहनकर मलद्वार के रास्ते से की जाती है।

प्रोस्टेट से क्या तकलीफ होती है ?

मनुष्य को पेशाब रुक-रुक कर आना, धीरे आना व करने के बाद ऐसा लगना कि पूरी नहीं हुई, बार-बार पेशाब आना, रोक नहीं पाना या कपड़ों में पेशाब हो जाना आदि।

प्रोस्टेट व प्रोस्टेट कैंसर लक्षणों में क्या फर्क है ?

शुरुआत में दोनों के लक्षण एक जैसे होते हैं, हाँ जब कैंसर बढ जाता है तो अन्य लक्षण भी चालू हो जाते हैं जैसे  हड्डियों में दर्द, भूख न लगना, कमजोरी बढ़ना इत्यादि।

प्रोस्टेट की तकलीफ होती है तो क्या- क्या जाँचें आवश्यक होती हैं ?

  1.  मूत्र में- देखने के लिए कि इन्फेक्शन तो नहीं है
  1. रक्‍त में- सामान्य जाँचें- सी.वी.सी., शुगर, क्रिएटीनीन आदि अगर  इन्फेक्शन न हो तो पी.एस.ए.
  1. सोनाग्राफी से गुर्दे की स्थिति, मूत्राशय की स्थिति, प्रोस्टेट की साइज, आकार (शेप) व कितनी पेशाब रुकी रहती है।
  1. यूरोफ्लो- देखने के लिए की पेशाव की धार कैसी है।

प्रोस्टेट के क्या- क्या इलाज हैं ?

ये इस बात पर निर्भर है कि मनुष्य को प्रोस्टेट की क्या- क्या तकलीफ है व जाँचों में क्या- क्या खराबी है।

A)  दवाइयाँ :

आम तौर पर दो प्रकार की दवाइयाँ प्रचलित हैं (जो जिन्दगी भर लेना पड़ती है)

1) अल्फा व्लाकर ग्रुप – इस तरह की दवाएँ प्रोस्टेट के मसल्‍स को रिलेक्स करती हैं यानी टाइटनेस को कम करती हैं ताकि पेशाब आसानी से हो जाए। इसका असर कुछ ही दिनों में हो जाता है।

2) ड्यूटास्टेराइड – ये दवाई प्रोस्टेट की साइज व वजन कम करती है पर इसका असर 3 माह बाद ही चालू होता है ये PSA की रिपोर्ट को आधा करती है।

कई बार डॉक्टर दोनों दवाई एक साथ देते हैं। जैसा कि आपको विदित होगा कि हर दवाई के कोई न कोई अनचाहे effect रहते हैं प्रोस्टेट की दवाइयाँ भी अपवादनहीं हैं पर आमतौर पर अधिकतर लोगों को कोई तकलीफ नहीं होती। एक बात

देखने में आई है कि आराम पड़ने के बाद अधिकतर लोग दवाइयाँ छोड़ देते हैं। एक बात ध्यान में रखना आवश्यक है कि प्रोस्टेट की तकलीफ उम्र की तकलीफ है यानी दवाइयाँ आजीवन लेना पड़ेगी। चूँकि दवाइयों के दौरान भी कैंसर हो सकता है अतः साल 6 माह में कुछ जाँचें करना आवश्यक रहती हैं।

B) ऑपरेशन :

प्रोस्टेट के ऑपरेशन की सलाह जब ही जाती है तब

1) दवाइयों से फायदा नहीं हो।

2) दवाइयाँ जिन्दगी भर लेना व समय-समय पर चेकअप करवाना सम्भव न हो।

3) प्रोस्टेट का मीडीयन लोब बढ़ जाए (दवाइयाँ काम नहीं करती)

4) बार-बार इन्फेक्शन, मूत्राशय में ज्यादा मात्रा में पेशाब रुकना, स्टोन होना या गुर्दे खराब होने लगे।